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Roshni ke shahar

34- रोशनी के शहर


यह शहर है रोशनी का, और चकाचौंध का।
शहरों का माहौल दिन रात भागमभाग का।

बहुमंज़िली अट्टालिकायें ,जगमगाती पूरी रात।
करती जगमग लाइटें , पीली नीली हरी लाल।

महंगी गाड़ियां सरसराती, भागती सडकों पर।
तेज़ इंगलिश म्यूजिक , गूँजते इनके अन्दर।

जिंदगी हमेशा गतिशील रहती, इन रोशन जगहोँ पर।
न रहता दिन और रात में ,कोई भी मामूली सा अंतर।

रोशनी के इन्हीं शहरों में, कुछ गरीब भी रहते हैं।
अपनी अनचाही व्यथा को, वे चुप चाप सहते हैं ।

बारह बजे रात को भी,रेड लाइटों पर रहते ये तत्पर ।
आँखों से नींद गायब, जैसेे रात के हों ये हमसफ़र।

फ्लाईओवर के नीचे शीत में ठिठुरता, मासूम बचपन।
भूख से तड़पते, कपड़े नही एक ढकने को उनका तन।

सर्दी,गर्मी ,बरसात की परवाह नहीं,चलते रहते अविरत ।
छोटी छोटी चीजों को बेचते,बाबूजी ले लो,की गुहार लगाते।

साहब के चेहरे की तरफ, उम्मीद से देखते रहते एकटक।
पलभर में मुस्काते फिर दूसरे पल, गुमसुम से हो जाते।

ग्रीनलाइट होती और बाबूजी ,जल्दीसे गाड़ी आगे बढ़ाते।
वे मज़बूर ख़ुद ही कुछ विचार कर, आगे को है चले जाते ।

पूस की बर्फ़ीली रातों में ,फुटपाथ पर सोने को विवश।
प्लास्टिक शीट का बिछौना ईंट की तकिया लगा कर।

उनको बेफिक्र होकर सोना भी, न देखा जाता किसी से।
व्यंग्यात्मक लहज़े में लोग कहते ,ज़रूर सोया होगा पीके।

वरना इतनी कड़कड़ाती ठंड, और तन पर सिर्फ़ एक चादर।
अब कौन ये बताए, इनकी जी तोड़ मेहनत का नश़ा है सर।

किस्मत है बुलंदियों पर ,वही सुख भोगते हैं ,इन शहरों में।
विधाता ने दुख दिए जिनको, वे उन्हें भोगते इन्हीं शहरों में।

इन्हीं रोशन शहरों में, रातों में होते हैं कितने काले काम।
इज़्ज़तदार बने फिरते ,इन रोशनी के शहरों के ठेकेदार।

इन्ही रोशन शहरोँ में कितनी, निर्भयाएँ हुईं कुर्बान ।
कुत्सित वासना को पूर्ण कर ,ली गई उनकी जान।

कुछ दिनों तक इनके कर्मों का ,होता खूब प्रचार प्रसार।
मीडिया भी शोर मचाती,कुछ समय बाद सब कुछ शांत।

जगमगाते रहते हमेशा ,बढ़ाते हुए अपना मान, सम्मान।
रोशनी के शहरों की, विश्व में भी होती है अलग पहचान।

स्नेहलता पाण्डेय'स्नेह
नईदिल्ली

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1 Comments

Apeksha Mittal

30-Jun-2021 01:54 PM

👍👍👍

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